Monday, July 10, 2017

अमरनाथ हमला: मोदी जी! ये TWEET का नहीं ACT का वक्त है

मन बेहद व्यथित है. इस बार जानें क्यों अमरनाथ यात्रा को लेकर बेहद सशंकित था. शायद इसी वजह से अबकी जाने की कोई तैयारी नहीं की. बाबा की कृपा से अब तक सात बार अमरनाथ यात्रा कर चुका हूं. पर इस साल मन में लगातार कहीं कुछ खटक रहा था. जम्मू के कुछ दोस्तों ने पूछा भी कि भाईअमरनाथ यात्रा पर नहीं आ रहे? बिना आशंका जाहिर किए उन्हें बताया कि इस बार बाबा नहीं बुलाए, सो नहीं आए. कई दोस्तों ने यात्रा पर जाने के बारे में पूछा. सभी को मना कर दिया. जिसने वहां का माहौल पूछने के लिए फोन किया, उन्हें भी ना जाने का ही सुझाव दिया. कुछ चले गए तो उनके सकुशल लौटने की मन ही मन प्रार्थना करता रहा. आज अमरनाथ यात्रियों पर हमले की खबर आते ही डर गया. तीन जवानों के जख्मी होने से शुरुआत होते-होते सात शिवभक्तों की मौत की खबर तक आ गई. आतंकियों की यह खुली चुनौती है. 15 साल के बाद आतंकियों ने फिर से भोले के भक्तों को ऐलान देकर निशाना बनाया. हमला होने के पहले एक घंटे में ही जम्मू-कश्मीर सरकार में मंत्री पद पर बैठीं एक मोहतरमा ने कहा कि जिस बस पर हमला हुआ वो अमरनाथ यात्रा के जत्थे में शामिल नहीं थी. जम्मू-कश्मीर पुलिस के आईजी ने कहा कि हमला अमरनाथ यात्रियों को निशाना बनाकर नहीं किया गया था. जेकेपी ने बेशर्मी से बाकायदा प्रेस नोट जारी कर अमरनाथ यात्रियों पर हमले की बात खारिज करते हुए कहा कि हमला पर्यटकों की बस पर हुआ है, जो बालटाल से जम्मू की ओर जा रही थी. न तो किसी नेता ने, और ना ही किसी पुलिस अधिकारी ने यह माना कि हमला सुरक्षा में चूक का नतीजा है. भोले के भक्तों की मौत का आंकड़ा जब बढ़ा तो आदतनपीएम नरेंद्र मोदी तक का ट्वीट आ गया. गृह मंत्रालय को भी कहना पड़ा कि हमला अमरनाथ यात्रियों को निशाना बनाकर किया गया है. सवाल ये है कि जब इस बार यात्रा इतने संवेदनशील माहौल में हो रही है, ऐसे में ये बस बालटाल से अनंतनाग के खन्नाबल तक तमाम सुरक्षा इंतजामों को धता बताते हुए कैसे पहुंच गई? सरकार अपनी नाकामी छिपाने के लिए कह रही कि बस अमरनाथ श्राइन बोर्ड में रजिस्टर्ड नहीं थी. ठीक है, बस रजिस्टर्ड नहीं थी. ऐसी सैकड़ों बसें रोजाना जाती हैं. लेकिन शाम सात बजे के बाद भी इस बस को किसने बेस कैंप से निकलने की इजाजत दी? निश्चय ही ये सब जांच का विषय है. जांच होती रहेगी. जांच का नतीजा भी निकलेगा, जो हम सबको पहले से पता है. हमले के फौरन बाद उमर अब्दुल्ला ने निंदा करते हुए कहा कि ये आतंकी कश्मीर और कश्मीरियत के दुश्मन हैं. उन्होंने #NotInMyName लिखते हुए गृहमंत्री को आगाह भी किया कि अब देशभर में रह रहे कश्मीरियों की सुरक्षा का विशेष तौर पर ख्याल रखा जाए. उनका ये डर भी वाजिब है. बीते कुछ दिनों से देश में जो क्रिया की प्रतिक्रया वाला चक्रचल रहा, वो खतरनाक है. देश में सांप्रदायिक सद्भाव की जो मजबूत नींव पड़ी है, वो विगत कुछ समय से कमजोर सी होती दिख रही है. पीएम मोदी जी सिर्फ रटी रटाई लाइनें बोल देने के कुछ हला-भला होने वाला नहीं. ट्वीट करने की बजाए एक्ट करिए. कश्मीर में आतंकवाद की जड़ों को खाद-पानी देने वाले हाथों को काटिए. अलगाववादियों के हाथों मत खेलिए. लालू-माया-मुलायम की तरह सैयद अली शाह गिलानी, मीरवाइज उमर फारुक और बिट्टा कराटे को आंखें मत दिखाइये. इनकी गर्दन मरोड़िये. महबूबा मैडम के साथ राज्य में मिली सियासी ताकत का फायदा उठाइये. अब तो मोसुल भी ISIS से आजाद हो गया. कश्मीर को भी इन आतंकियों से आजाद कराइये. #Anantnag #AmarnathYatra #kashmiriyat #AmarnathPilgrims #Kashmirx

Friday, June 30, 2017

GST "बेबी" को बड़ा होने दीजिए, वक्त बताएगा लायक है या नालायक!

1947 में स्वाधीनता के मौके पर रात 12 बजे पार्लियामेंट में जो नेता थे, वे हर दल से थे. लेकिन, आज GST लागू करने के मौके पर पार्लियामेंट में जो जनप्रतिनिधि इकट्ठा हुए, उसमें से विपक्ष (कांग्रेस) नदारद था. उनकी यह गैरमौजूदगी डेमोक्रेसी पर बड़ा सवाल है. जिस सेंट्रल हॉल का प्रयोग ऐतिहासिक मौकों पर राष्ट्रपति की सदारत में होने वाले आयोजनों के लिए होता है, उससे दूरी बनाना कांग्रेस की अदूरदर्शिता तो है ही, भाजपा की भी नाकामी है. इवेंट मैनेजमेंट में माहिर भाजपा ने 1947 के उस गौरवशाली पल को सांकेतिक रूप से दोहराने के लिए रात 12 बजे का वक्त तो चुन लिया लेकिन वो 'भाव' नहीं ला सकी.
देश को दूसरी आजादी दिलाने का दावा करने वाली भाजपा जीएसटी पर भले अपने गाल बजा ले, लेकिन ये सच है कि नोटबंदी की तरह ही इस फैसले पर भी वो सबका साथ नहीं पा सकी. कांग्रेस जहां जीएसटी को ‘प्री मेच्योर डिलीवरी’ कह रही वहीं बीजेपी इसे ‘पोस्ट मेच्योर’ बता रही. फिलहाल प्री हो या पोस्ट डिलीवरी, ‘बेबी’ को बड़ा होने दीजिए. वक्त बताएगा कि ये लायक है या नालायक….


Sunday, May 14, 2017

100वीं सालगिरह दादागिरी के साथ मनाने के लिए चीन ने अभी से बुना ‘जाल’!

चीन ने दुनिया पर दबदबा बनाने के लिए अभी से एक ऐसी चाल चली है, जो 2049 तक उसे सबसे ताकतवर देश बनाने में बेहद मददगार साबित होगी. चीन की इस नई चाल का नाम है OBOR यानि वन बेल्ट वन रोड.
चीन पूरी दुनिया के सामने एशिया, यूरोप और अफ्रीका को जोड़ने वाले OBOR को वाणिज्यिक लाभ और तरक्की के एक नायाब मॉडल के रूप में पेश कर रहा है.
चीन ने दुनिया के कई मुल्कों को OBOR में भागीदारी के लिए राजी कर लिया है. पूरी दुनिया को इस आर्थिक गलियारे का सब्जबाग दिखाते हुए चीन यह साबित करने की कोशिश कर रहा कि इससे सबका फायदा होगा, इसलिए एशिया से लेकर यूरोप तक सभी देश इसमें शामिल हों.
अपनी योजना में चीन काफी हद तक कामयाब भी हो गया है. फ्रांस, बेल्जियम, जर्मनी, पोलैंड, बेलारुस, रूस, कजा​खस्‍तान, पाकिस्तान और नेपाल तक को चीन ने इस योजना में शामिल कर लिया है.
दुनिया के और मुल्कों को अपने इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बनने के लिए चीन 14-16 मई, 2017 को एक वैश्विक सम्मेलन का आयोजन करने जा रहा है. भारत ने इस सम्मेलन से दूरी बना ली है.
जानकारों का मानना है कि वन बेल्ट वन रूट के बहाने चीन दुनिया पर अपनी धौंस जमाना चाहता है. यूरोप तक घुसपैठ बहुत हद तक इसे साबित भी करती है. इसमें उसने 29 देशों के राष्ट्राध्यक्षों, 70 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुखों, दुनिया भर के 100 मंत्रिस्तरीय अधिकारियों, विभिन्न देशों के 1200 प्रतिनिधिमंडलों को आमंत्रित किया है.

1400 अरब डॉलर का है ड्रैगन का ड्रीम प्रोजेक्ट
ओबीओआर लगभग 1,400 अरब डॉलर की परियोजना है. चीन को उम्मीद है कि उसका यह ड्रीम प्रोजेक्ट 2049 तक पूरा हो जाएगा. 2014 में आई रेनमिन यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि नई सिल्क रोड परियोजना करीब 35 वर्ष में यानी 2049 तक पूरी होंगी. यानि समाजवादी चीन बनने की अपनी 100वीं वर्षगांठ को और अभिमान के साथ मनाने का चीन ने अभी से पूरा खांका तैयार कर लिया है.

क्या है सिल्क रूट

2000 साल पहले सिल्‍क रूट के जरिए पश्चिमी और पूर्वी देशों के बीच कारोबार होता था. सिल्क रूट वो व्यापारिक मार्ग है जिसके ज़रिए चीन 2000 वर्ष पहले अपना रेशम यूरोप के देशों को बेचता था. बदले में उन देशों से सोने और चांदी जैसी वस्तुओं का आयात करता था. कभी भारत भी सिल्क रूट का एक अहम हिस्सा हुआ करता था. चीन की कोशिश इसी पुराने सिल्क रूट को पुनर्जीवित करने की है.OBOR के दो रूट होंगे. पहला लैंड रूट चीन को मध्य एशिया के जरिए यूरोप से जोड़ेगा, जिसे कभी सिल्क रोड कहा जाता था. दूसरा रूट समुद्र मार्ग से चीन को दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी अफ्रीका होते हुए यूरोप से जोड़ेगा, जो न्‍यू मैरिटाइम सिल्क रोड कहा जा रहा है.



ईयू से झटका खाए ब्रिटेन को दिखा सहारा
चीन की बढ़ती ताकत देख ब्रिटेन उसका मुरीद हो चुका है. शायद इसीलिए ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने चीन से व्यापार में दिलचस्पी दिखाते हुए लंदन को मुख्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार केंद्र के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव रखा था. मौजूदा पीएम थेरेसा मे भी कैमरन से सहमत हैं. उनको भी उम्मीद है कि इससे लंदन को लाखों डॉलर का फायदा होगा.

यूरोपियन यूनियन से बाहर होने के बाद से ब्रिटेन को अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए वैसे भी इतने बड़े निवेशक की दरकार थी. चीन से लंदन तक का रेलवे ट्रैक सात देशों की अर्थव्यवस्था को आपस में जोड़ेगा. इसके साथ ही लंदन यूरोप का 15वां ऐसा शहर बन गया है, जिससे चीन का ट्रेन के जरिये संपर्क हुआ. इससे पहले यह ट्रेन लंदन के लिए 1 जनवरी 2017 को चीन से चली थी, जो 18 दिनों में लंदन पहुंची. फिलवक्त चीन और लंदन समुद्री रास्ते के जरिए एक-दूसरे को सामान भेजते हैं, जिसमें दो गुना समय के साथ-साथ पैसा भी ज्यादा लगता है.



निर्यात बढ़ाने के लिए चीन को है इसकी दरकार
चीन ने अपने रेलमार्ग का इतना अधिक विस्तार कर लिया है कि 2011 से ही वह यूरोप के कई देशों को ट्रेन के जरिए सामान भेज रहा है. सामानों को निर्यात करने की उसकी बहुत बड़ी ताकत ट्रेन ही है. अब लंदन तक अपनी ट्रेनों की पहुंच बनाकर एक बार फिर उसने अपनी मंशा जाहिर कर दी है. यूरोप और चीन के बीच 2016 में 40 हजार कंटेनर सामान का आयात-निर्यात हुआ था. चीन ने 2020 तक इसे एक लाख कंटेनर करने का लक्ष्य रखा है, जो ट्रेन से ही पूरा होगा.

दरअसल पिछले कुछ सालों में चीन का निर्यात घटा है. साल 2015 में चीन का निर्यात घटकर 2.27 ट्रिलियन डॉलर का रह गया था. 2014 में यह 2.34 ट्रिलियन डॉलर था. वहीं 2015 में चीन की आर्थिक वृद्धि दर 7.0 फीसदी से घटकर 6.5 फीसदी रह गई थी.

यदि यही रफ्तार कुछ और समय तक रहती तो चीन की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगता, लेकिन सिल्क रूट के बहाने चीन ने न सिर्फ लंदन तक अपनी मालगाड़ी पहुंचाई, बल्कि OBOR के जरिए विश्व के कई बड़े देशों को अपने साथ जोड़ लिया.

सात देशों की अर्थव्यवस्था से जुड़ेगा चीन
हाल ही में 29 अप्रैल को 12 हजार किलोमीटर लंबा फासला तय कर पहुंची अपनी ट्रेन का चीन ने शाही अंदाज में खैरमकदम किया.

दुनिया के दूसरे सबसे लंबे ट्रेन रूट पर लंदन से चली ईस्ट विंड मालगाड़ी 20 दिनों में पूर्वी चीन के यिवू शहर पहुंची. 30 डिब्‍बों वाली ट्रेन में व्हिस्‍की, सॉफ्ट ड्रिंक, विटामिन और दवाइयां थीं. यह मालगाड़ी फ्रांस, बेल्जियम, जर्मनी, पोलैंड, बेलारुस, रूस और कजाखस्‍तान से होते हुए चीन पहुंची.

अभी चीन के यिवु शहर से स्पेन के मैड्रिड तक बना रेलवे रूट दुनिया का सबसे लंबा रेल रूट है. इसकी लंबाई करीब 13 हज़ार किलोमीटर है.

इससे पहले चीन ने 18 नवंबर 2014 को 82 बोगियों वाली एक मालगाड़ी को 21 दिनों में तकरीबन दस हजार किलोमीटर दूर स्पेन की राजधानी मैड्रिड भेजा था. अक्टूबर 2013 में भी चीन ने 9820 किलोमीटर दूर जर्मनी के तटीय शहर हैम्बर्ग तक एक ट्रेन भेजी थी.

सीपीईसी में चीन ने लगाया पूरा जोर

OBOR का हिस्सा बनने जा रहे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) पर तकरीबन 48 अरब डॉलर का निवेश होगा. सीपीईसी की रूपरेखा चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग ने अप्रैल 2015 के पाकिस्तान दौरे से समय ही खींच ली थी. सीपेक पर भारत को मनाने के लिए चीन लगातार दिलासा दे रहा कि इसका कश्मीर मसले से कोई लेना-देना नहीं है. चीन का ये आश्वासन तब छलावा लगता है जब अगले ही पल उसका बयान आता है कि कश्मीर मामले पर अभी भी उसका रुख पुराना ही है. ग्वादर पोर्ट पर चीनी गतिविधि बढ़ने से पहले ही भारत एतराज जता चुका है.

वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रताप वैदिक का कहना है कि चीन का वन बेल्ट वन रूट प्रोजेक्ट पूरी तरह से उसके स्वार्थ से जुड़ा हुआ है. पाकिस्तान-चीन आर्थिक गलियारा भी उसका हिस्सा है. भारत इस प्रोजेक्ट का हिस्सा नहीं है, लेकिन वह इसे पूरी तरह से इसकी अनदेखी नहीं कर सकता.


कॉरिडोर से चीन को कई फायदे
सीपीईसी से चीन तक क्रूड ऑयल की पहुंच आसान हो जाएगी. चीन में 80 प्रतिशत क्रूड ऑयल मलक्का की खाड़ी से शंघाई पहुंचता है. अभी करीब 16 हजार किमी. का रास्ता है, लेकिन सीपीईसी से ये दूरी 11000 किलोमीटर रह जाएगी. सीपीईसी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के गिलगित-बाल्तिस्तान इलाके से भी गुजरता है, जिस पर भारत का दावा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सीपीईसी के मुद्दे पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात में एतराज जता चुके हैं, लेकिन चीन ने इसे ज्यादा तवज्जो नहीं दी थी.

चीन चाहता है कि भारत भी उसके सिल्क रूट का हिस्सा बने. चीन की चाहत है कि बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार (बीसीआईएम) गलियारा को भारत भी मंजूरी दे दे. इसके लिए चीन दबाव भी डालने की कोशिश में है, लेकिन भारत ने इस पर पहले ही इससे इनकार कर दिया. बीसीआईएम चीन के प्रस्तावित सिल्क रूट का हिस्सा है.

बीसीआईएम के लिए राजी होने का मतलब है भारत के बाजारों का चीनी सामानों से पट जाना. दरअसल भारत में बांग्लादेश और म्यांमार के सामानों के मुकाबते चीनी सामानों की अच्छी खासी मांग है. अभी चीनी सामानों के आने में काफी अड़चनें हैं.

रक्षा विशेषज्ञ सुशांत सरीन का कहना है कि चीन का वन बेल्ट वन रूट प्रोजेक्ट आर्थिक नहीं सामरिक महत्व का है. इससे सिर्फ चीन का भला होगा. चीन ने ओबीओआर पर अब तक ये नहीं बताया कि इस पर संचालन कैसे होगा. मसलन जिन-जिन मुल्कों से ये रूट गुजरेगा, वहां टैक्स का क्या प्रोवीजन होगा? अभी सिर्फ छोटे देश ही उसके इस प्रोजेक्ट से जुड़े हैं. रूस तक ट्रेन पहुंचाना तो एक बार समझ में आता है, लेकिन पूरी दुनिया को इससे जोड़ने की कोशिश में खोट दिखता है.

चीन की मंशा पर जब-तब सवाल उठते रहते हैं. इसी कारण उसके नेताओं को भी सफाई देनी पड़ती है. चीन के विदेश मंत्री वांग यी को भी कहना पड़ता है कि ओबीओआर भूराजनीति का माध्यम नहीं है. इसे पुरानी शीत युद्ध वाली मानसिकता के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.

ओबीओआर जैसी बड़ी परियोजना पर चीन के ही कुछ अर्थशास्त्रियों ने सवाल उठाए हैं. ओबीओआर के रूट पर कई ऐसे इलाके हैं जो राजनीतिक अस्थिरता के साथ-साथ आतंकवाद से भी ग्रस्त हैं. बलूचिस्तान उनमें प्रमुख है. यहां सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती होगी.


अकेला पड़ा भारत

चीन की इस महत्वाकांक्षी योजना में अब नेपाल भी जुड़ गया है. इस योजना में सहमति नहीं जताने वाले इस देश ने भारत को अकेला छोड़ते हुए शुक्रवार को इस परियोजना में शामिल होने के लिए हस्ताक्षर कर दिए.नई परिस्थितियों में चीन के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट में शामिल न होने वाला भारत दक्षिण एशिया का अकेला देश रह गया है.

बीजिंग की यह सड़क भारत के सारे पड़ोसी देशों तक जाएगी.बीजिंग में दो दिन के क्षेत्रीय सम्मेलन से पहले नेपाल इस प्रोजेक्ट में शामिल हुआ है. नेपाल के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा, "इसके तहत संपर्क के क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ाया जाएगा. ट्रांजिट, लॉजिस्टिक सिस्टम, ट्रांसपोर्ट नेटवर्क और रेलवे, रोड और हवाई सेवाओं के क्षेत्र में भी आधारभूत संरचना का विकास किया जाएगा."

नेपाल, बांग्लादेश के बाद चीन की इस परियोजना में शामिल होने वाला दक्षिण एशिया का दूसरा देश बना है. बांग्लादेश ने अक्टूबर 2016 में इस प्रोजेक्ट में शामिल होने का एलान किया था. माना जा रहा है कि बीजिंग में होने वाले क्षेत्रीय सम्मेलन के दौरान श्रीलंका भी वन बेल्ट, वन रोड प्रोजेक्ट से जुड़ सकता है.


अमेरिका का यू-टर्न,‘वन बेल्ट, वन रोडफोरम में लेगा हिस्सा
14 और 15 मई को होने वाली OBOR फोरम में अब अमेरिका भी शामिल होगा. अमेरिका ने अचानक यू-टर्न लेते हुए यह फैसला किया है. दोनों देशों का यह कदम भारत पर काफी दबाव डालने वाला है.

OBOR को टक्कर देगा भारत-रूस का ग्रीन कॉरिडोर
भारत और रूस साथ मिलकर दोनों देशों के बीच 7200 किलोमीटर लंबा ग्रीन कॉरिडोर बनाने की तैयारी कर रहे हैं. यह ग्रीन कॉरिडोर भारत और रूस की दोस्ती के 70 साल पूरे होने के मौके पर शुरू होगा. यह ग्रीन कॉरिडोर ईरान होते हुए भारत और रूस को जोड़ेगा. इसके साथ ही भारत यूरोप से भी जुड़ेगा.

इस आर्टिकल को News18hindi की वेबसाइट पर भी पढ़ सकते हैं. यहां क्लिक करें... 

Wednesday, February 22, 2017

दबे पांव हिन्दुस्तान की दहलीज पर आया संकट, बगदादी की मुनादी थी दरगाह में धमाका

हिन्दुस्तान की दहलीज पर दबे पांव एक ऐसे संकट ने दस्तक दे दी है, जिसके नाम से पूरी दुनिया थर्राती है. इराक, सीरिया, साइप्रस, जॉर्डन और टर्की जैसे देशों में जड़े जमा चुके खूंरेजी संगठन आईएसआईएस ने अपनी नजरें अब साउथ ईस्ट एशिया पर गड़ा दी हैं. ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत और चीन अब उसके निशाने पर है. बीते हफ्ते पाकिस्तान की सूफी दरगाह लाल शाहबाज कलंदर में हुआ धमाका उसी की ‘मुनादी’ थी. पाकिस्तान में आईएसआईएस की आसान घुसपैठ ही भारत के लिए मुसीबत का सबब बन गया है.

कराची आतंकी संगठनों का बना अड्डा

हाल ही में बेल्जियम के थिंक टैंक इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप ने एक रिपोर्ट में खुलासा किया है कि पाकिस्तान का सबसे बड़ा शहर कराची भारत विरोधी आतंकी संगठनों का नया अड्डा बनता जा रहा है. ये संगठन बाकायदा वहां की सेना की सरपरस्ती में चलाए जा रहे हैं. कराची शहर आतंकी आकाओं के लिए हर तरह से मुफीद भी है. बड़ा होने के साथ-साथ कराची पाकिस्तान के सबसे अमीर शहरों में शुमार है. यहां से पाकिस्तान को 50 फीसद राजस्व मिल जाता है. पैसों की चमक के चलते आतंकियों ने इस शहर को चुना.
 

पाकिस्तान में आतंकी संगठनों की एक पूरी फेहरिश्त है. लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, तहरीक-ए-तालिबान और जमात-उद-दावा जैसे न जाने कितने संगठन इस शहर में बैठकर हिन्दुस्तान के खिलाफ साजिशें रचते हैं. इन संगठनों की सरमाएदारी में भारत को रक्तरंजित करने का प्लान तैयार किया जाता है. जैश जहां साल 2000 से भारत के खिलाफ जहर उगल रहा, वहीं लश्कर 1986 से ही सक्रिय है. पाकिस्तानी सेना का इन संगठनों पर कोई जोर नहीं है. चार साल पहले यानि 2013 में जरूर पाक रेंजर्स ने कुछ आतंकियों को खदेड़ा था, लेकिन सख्ती कम होते ही वे फिर लौट आए.

एक हफ्ते में आठ बड़े हमले ने दहलाया

बीते हफ्ते एक के बाद एक हुए 8 बड़े हमलों में कयामत का जो मंजर इस पड़ोसी मुल्क ने देखा, उसकी इबारत बरसों पहले उसके खुद ही लिखी थी. दरअसल जिस अलगाववादी सोच की बुनियाद पर यह पड़ोसी मुल्क बना है, उस पर किसी के पनपने की उम्मीद रखना बेमानी होगी. एक बानगी देखिए, 1965 में इस कट्टरपंथी मुल्क के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने हिन्दुस्तान से होड़ लेने की हड़बड़ाहट में ऐलान कर दिया कि अगर भारत परमाणु बम बनाएगा तो हम भी बनाएंगे, भले ही इसके लिए हमें घास की रोटी खाने पड़े. यह पाकिस्तानी हुक्मरानों की भारत से जलन और उनके वैचारिक दिवालियेपन को दर्शाता है. उसके बाद से एशिया में सामरिक संतुलन की दुहाई देते हुए पाकिस्तान ने कई खतरनाक मिसाइलों का परीक्षण किया था.

बगदादी ने बोको हराम से लेकर अल शबाब तक को जोड़ा

बगदादी अब साउथ ईस्ट एशिया पर अपना परचम लहराना चाहता है. आईएसआईएस के मुखिया अबू बकर अल बगदादी के नापाक मंसूबों को अफगानिस्तान से सटी सीमा पर मौजूद आतंकी संगठनों का साथ मिल गया है. नाइजीरिया का बोको हराम, सोमालिया का अल शबाब और पाकिस्तान का अंसार उल तौहीद जैसे आतंकी गुटों को जोड़कर बगदादी खुद इनका खलीफा बन गया है. अब वह अमेरिका से लेकर रूस और सीरिया से यूरोप तक बगदादी अपना साम्राज्य बनाना चाहता है.

अमेरिका की चूक का नतीजा आईएसआईएस

आईएसआईएस दरअसल अमेरिका की एक रणनीतिक चूक का ही नतीजा है. 2006 में इराक से सद्दाम हुसैन का खात्मा कर अमेरिकी सैनिक अमेरिका लौट आए. बस यहीं से बगदादी को इराक में अपनी जड़ें जमाने का मौका मिल गया. सत्ताविहीन इराक छोटे-मोटे आतंकी गुटों की सुरक्षित शरणस्थली बन गया. बगदादी ने इन्हें एकजुट कर आईएसआई (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक) नाम का आतंकी संगठन बना लिया. बाद में सीरिया जाने पर उसने आईएसआई से नाम बदलकर आईएसआईएस (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया) कर दिया. साल 2014 में कुछ ऐसे वीडियो जारी किए जिसने पूरी दुनिया को दहला दिया. हत्या के नए-नए तरीके इजाद कर जिस तरीके से उसके कत्लोगारत का खेल खेलना शुरू किया, उसने पूरी दुनिया में सिहरन पैदा कर दी.

सद्दाम हुसैन, लादेन और अब बगदादी

दरअसल, अमेरिका शुरू से ही अपने हित साधने के लिए चरमपंथी ताकतों का इस्तेमाल करता आया है. पहले उसने ओसामा बिन लादेन को पाला पोसा. जब वह उसी के लिए नासूर बन गया तो पाकिस्तान के ऐबटाबाद में उसका भी सद्दाम जैसा अंजाम कर दिया. सद्दाम हुसैन भी एक समय अमेरिका का ‘दोस्त’ था. बताया जाता है कि सद्दाम को अमेरिका ने रासायनिक हथियार मुहैया कराए, जो बाद में उसी के लिए जी का जंजाल बना. अमेरिका ने उसे भी घुसकर मारा. अब इस कड़ी में बगदादी का नाम भी जुड़ गया है. अमेरिका ने जाने-अनजाने आईएसआईएस की मदद की. उसे हथियार मुहैया कराए. इराकी सेना को भेजे गए हथियार बगदादी की सेना ने हथिया लिए. इन्हीं हथियारों के दम पर उसने इराक में कोहराम मचाना शुरू कर दिया. कुछ ही दिनों में आईएसआईएस की जड़ें इराक, सीरिया, ईरान, साइप्रस, जॉर्डन, लेबनान, फिलिस्तीन, टर्की और इजराइल तक में जम गईं.

हाफिज सईद की नजरबंदी भी दिखावा

हाल ही में नवाज सरकार ने भारत सरकार की कूटनीति के बाद चौतरफा दबाव पड़ने पर जमात-उद-दावा के मुखिया और मोस्ट वांटेड आतंकी हाफिज सईद को ‘नजरबंद’ किया है. लेकिन इस ‘नजरबंदी’ पर भी सवाल उठ रहे हैं. वहीं पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ हाफिज के बारे में मुख्तलिफ राय रखते हुए उन्हें गरीबों का हमदर्द बता डाला. मुंबई के गुनहगार हाफिज की शान में मुशर्रफ ने कसीदे पढ़ते हुए कहा कि वे तो एनजीओ चला रहे हैं. उन्हें रिहा किया जाना चाहिए. वहां के हुक्मरानों की यही सोच इस मुल्क को आग में झोंक रही है, जिसकी तपिश से हिन्दुस्तान भी झुलसता रहा है.

सूफी धारा बगदादी के निशाने पर

पाकिस्तान में सिंध प्रांत के मशहूर लाल शाहबाज कलंदर दरगाह में हुए धमाके ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया. 100 जायरीनों की मौत से पाकिस्तान थर्रा उठा. हमले के फौरन बाद आईएसआईएस ने इसकी जिम्मेदारी ली थी. लाल शाहबाज कलंदर सूफी संत सैय्यद मोहम्मद उस्मान मारवंदी की दरगाह है. बताया जाता है कि अफगानिस्तान ने मारवंद इलाके में वे पैदा हुए थे. मदीना, कर्बला, अजमेर और सिंध घूमते हुए वे सहवान में ही आकर बस गए थे. इस्लाम की सूफी धारा ने हमेशा से मजहबी और फिरकापरस्त ताकतों का विरोध करते हुए इंसानियत को सबसे ऊपर रखा. इसी वजह से सूफी दरगाह आईएसआईएस जैसे दुर्दांत संगठन के निशाने पर आ गए है. अमीर खुसरो ने लाल शाहबाज कलंदर की शान में ही बेहद मकबूल सूफियाना गीत दमादम मस्त कलंदर लिखा था.
 

डोनाल्ड ट्रंप का रुख हो सकता है घातक

इधर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया के नक्शे से आईएसआईएस का वजूद खत्म करने की प्रतिबद्धता को फिर दोहराया है. ट्रंप ने साफ कहा कि अपने देश को सुरक्षित रखने के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं. लाल शाहबाज कलंदर दरगाह में हुए धमाके के बाद ट्रंप ने नवाज शरीफ को हमला करने वाले आतंकियों का पता लगाने के लिए मदद की पेशकश की थी. ट्रंप ने अमेरिकी सेना के पुनर्निर्माण करने का ऐलान किया है. ट्रंप का यह रुख खूंरेजी संगठन आईएसआईएस के लिए कितना घातक होगा, यह फिलहाल भविष्य के गर्त में है. शायद मुस्लिम कट्टरपंथ के अंदेशे को देखते हुए ही ट्रंप ने ईरान, सूडान, लीबिया, सोमालिया, सीरिया, इराक और य़मन पर पाबंदी लगाई थी.

कट्टरपंथियों का अमेरिका करता रहा है इस्तेमाल

काबिलेगौर है कि 20वीं सदी में रूस से सहमे अमेरिका ने भी अपने हित साधने के लिए अलगावादी अवधारणा को खाद-पानी दिया था. उसने अपना उल्लू सीधा किया, लेकिन देर से ही सही पर इसका खामियाजा उसे भी भुगतना पड़ा था. साम्यवादी सोच की काट के लिए अमेरिका ने कट्टरपंथियों का इस्तेमाल किया तो सही, लेकिन वह दीर्घकालीन नहीं रहा. नतीजतन जिन कट्टरपंथी अलंबरदारों को कभी उसने अत्याधुनिक जंगी साजो-सामान मुहैया कराए, वह उसी की जान लेने पर आमादा हो गए.
 
इस आर्टिकल को News18India की वेबसाइट पर भी पढ़ सकते हैं। ये है लिंक
http://hindi.news18.com/news/world/islamic-state-chief-abu-bakr-al-baghdadi-news-target-is-india-950194.html
 
 

Tuesday, January 10, 2017

यूपी : मायावती का महादांव, सपा, भाजपा और कांग्रेस की उड़ी नींद, सूबे में बनी बसपा की संभावना?

यूपी के चुनावी समर में इस बार सबसे ज्यादा तैयार बहन जीही दिख रही हैं। सत्ताधारी दल सपा जहां अपने परिवार में ही उलझी हुई है, तो बीजेपी की हालत बिन दूल्हे की बारात वाली दिख रही है। कांग्रेस का तो कोई पुरसाहाल ही नहीं है। इन चार दलों के अलावा बाकी सिर्फ अपने अस्तित्व की लड़ाई ही लड़ेंगे। एक ओर जहां बीजेपी, सपा और कांग्रेस अपने प्रत्याशियों तक का चयन नहीं कर पा रहे हैं, वहीं बहनजी ने सबसे पहले न सिर्फ चयन किया, बल्कि ताल ठोंकते हुए उनका ऐलान भी कर दिया। बसपा सुप्रीमो ने खुला खेल फर्ररुखाबादी स्टाइल में जिस तरह बिना लाग लपेट के उम्मीदवारों का ऐलान किया वो दिखाता है कि उनका न सिर्फ आत्मविश्वास सबसे ज्यादा है, बल्कि सियासी सूझबूझ में फिलहाल वे सब पर भारी पड़ रही हैं।

नोटबंदी से बेअसर माया’:  कांशीराम की विरासत को आगे बढ़ाने वाली मायावती इस बात से बेफिक्र दिख रही हैं कि उनके प्रत्याशियों के सामने कौन मोर्चे पर आएगा। उल्टा उन्होंने पहले ही दांव लगाकर बाकी दलों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि उनके लड़ाकों के सामने वे किसे उतारे। बाकी दल अभी भी एक-दूसरे के पत्ते खुलने का इंतजार कर रहे हैं। इस बार यूपी में अपना वनवासखत्म होने का इंतजार कर रही भाजपा भी पसोपेश में है कि यदि जीत मिलती है, तो किसका राजतिलककरेंगे। राजनीतिक पार्टियों के लिए नोटबंदी जैसी विपदाने भी मायावती की योजना में रत्तीभर परिवर्तन नहीं किया।

सर्वाधिक समय तक सूबे की सीएम : मायावती का यूपी में कद क्या है इसकी बानगी देखिए। उत्तर प्रदेश में 8 मार्च 1952 से लेकर अब तक कुल 16 बार विधानसभा गठित हो चुकी है। अब तक 20 लोग 35 बार सीएम की कुर्सी पर बैठ चुके हैं। इसमें सर्वाधिक समय तक सिर्फ मायावती ही इस कुर्सी पर काबिज रही हैं। बसपा सुप्रीमो अपने चार बार के मुख्यमंत्रित्व काल में कुल 2569 दिन तक इस पद पर रहीं। 15 जनवरी को अपना 61वां बर्थडे मनाने जा रहीं मायावती एक बार फिर यूपी की सीएम बनने के लिए लालायित हैं। उनकी यह लालसा मौजूदा सियासी हालात में खूब फलती-फूलती दिख रही है।


सोशल इंजीनियरिंग के हिट फॉर्मूले पर पूरा भरोसा : उत्तर प्रदेश का चुनाव विकास पर नहीं, बल्कि जाति के बलबूते लड़ा जाता है, इसीलिए बहनजी को एक बार फिर 10 साल पहले खुद आजमाए हुए सोशल इंजीनियरिंग के हिट फॉर्मूले पर पूरा भरोसा है। 2007 में कारगर रहा उनका ब्राह्मण दलित और मुस्लिम का सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूला इस बार भी रंग दिखा सकता है। हालांकि 2012 में एंटी इनकम्बेंसी और मुसलमानों के खुलकर मुलायम के साथ आने से उन्हें सत्ता से बेदखल होना पड़ा था। हालांकि इस बार परिस्थितियां बिलकुल विपरीत है। मायावती का कोर वोटर दलित ही है, जिसका उत्तर प्रदेश में तकरीबन 20.5% वोट है, वहीं कुल आबादी में 20% मुसलिम हैं। ऐसे में टिकट बंटवारे में उन्होंने ऐसा समीकरण बिठाने की कोशिश की है, जिससे दलित-मुसलिम के साथ-साथ ब्राह्मण बिरादरी भी उनके साथ रहे।

मुस्लिम वोट बैंक को पूरी तवज्जो : माया अपने मुस्लिम वोट बैंक को भी छिटकने नहीं देना चाहतीं। वे बखूबी समझती हैं कि मुसलमानों का एकजुट वोट किसी भी सियासी समीकरण को बना और बिगाड़ सकता है, इसीलिए स्पष्ट शब्दों में वे उन्हें बतलाती रही हैं कि सपा का साथ देकर वे अपना वोट जाया न करें। मायावती ने टिकट बंटवारे में मुसलमानों को 403 विधानसभा सीटों में से 97 सीटें दी हैं। बसपा की सौ उम्मीदवारों की पहली सूची में 36 मुसलमान प्रत्याशी थे, वहीं दूसरी सूची में 22 और तीसरी सूची में 24 मुस्लिम प्रत्याशी थे।

टिकट बंटवारे में सबको साधा : मायावती ने कितनी चालाकी से समाज के सभी वर्गों को साधा है, इसकी बानगी उनके टिकट बंटवारे को देखकर आसानी से समझा जा सकता है। जातिगत समीकरण पूरी तरह फिट बैठाने के बावजूद वो नहीं चाहतीं कि उन पर यह ठप्पा लगे। वे कहती रहती हैं कि हम जातिवादी नहीं है। हमने चुनाव के लिए समाज के सभी वर्गों को टिकट दिया, शायद इसीलिए इस बार उन्होंने बाकायदा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस विशेष तौर पर सिर्फ यह बतलाने के लिए की, कि उन्होंने पूरे समाज को बराबरी का हक दिया है। बसपा ने इस बार 87 टिकट दलितों, 97 मुसलमानों, 106 ओबीसी और 113 अगड़ी जाति के लोगों को दिया है। अगड़ी जाति में भी टिकट बंटवारे के दौरान उन्होंने सामंजस्य बैठाने की कोशिश की। यहां भी देखिए, उन्होंने 66 टिकट ब्राह्मण, 36 क्षत्रिय और 11 कायस्थ, वैश्य एवं पंजाबी समाज को दिए हैं।

कांग्रेस को डराया भी और लालच भी दिया : माया कितनी दूरदर्शी हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वे विधानसभा में अपनी मजबूती के लिए कांग्रेस को दो साल बाद होने वाले आम चुनाव में होने वाले नुकसान का डर दिखाने लगी हैं। दरअसल, मायावती चाहती हैं कि कांग्रेस किसी भी कीमत पर सपा से गठबंधन न करें, क्योंकि इस दोस्ती का सीधा असर उनके वोट बैंक पर पड़ेगा।


माया गाहे-बगाहे अपनी रैलियों में कांग्रेस को ये संकेत दे रही हैं कि यदि वे 2017 में सपा से दूर रहती हैं, तो 2019 में हाथीका पूरा सपोर्ट हाथके साथ होगा। कांग्रेस भी जानती है कि यूपी में वैसे भी उसकी दाल नहीं गलने वाली। ऐसे में भलाई इसी में है कि 2019 में भाजपा के खिलाफ मजबूती से लड़ा जाए।


इस आर्टिकल को News18India की वेबसाइट पर भी पढ़ सकते हैं। ये है लिंक
http://hindi.news18.com/blogs/rahul-vishwakarma/mayawati-up-election-bjp-and-congress-540699.html