Thursday, October 28, 2010

आखिर राहुल गांधी कब तक दर्द सहेंगे?


आज एक खबर आई कि राहुल गांधी ने हाल ही में पूर्वांचल के गरीबों की दिक्कतों को और करीब से जानने के लिए गोरखपुर से मुंबई तक का सफर ट्ेन से किया, वो भी जनरल बोगी में। सफर भी ऐसा कि गोरखपुर से मंुबई तक 36 घंटे के सफर में उन्हें न तो किसी ने देखा और न ही पहचाना। उनका पूरा दौरा इतना गुपचुप था कि मीडिया तो छोड़िये, यहां के शासन-प्रशासन को भी कानों-कान खबर नहीं हुई कि युवराज उनके जिले में हैं। हो सकता है कि उन्होंने आजीविका की तलाश में मुंबई जा रहे लोगों के दर्द को और करीब से महसूस करने के लिए भेष भी बदला हो, लेकिन है न ये थोड़ी अचरज वाली बात। राहुल के गोरखपुर की सीमा से बाहर जाने के बाद यहां के पुलिस महकमे को उनके आने की खबर मिली। राहुल के जाने के एक दिन बाद मीडिया को भी इसकी भनक लगी। राजनीतिक पंडितों और मीडिया ने राहुल के इस गुपचुप दौरे के निहितार्थ निकालने शुरू कर दिए। किसी ने कहा कि वे यहां अपने राजनीतिक कॅरियर का भविष्य जानने के लिए कुशीनगर के किसी प्रसिद्ध बाबा को अपनी कुंडली दिखाने आए थे, तो किसी ने कयास लगाया कि अपने विवाह के सिलसिले में उनका यह गुप्त दौरा है। लेकिन किसी को उनके इरादों का इल्म नहीं था। खैर, खबरनवीसों ने अपने-अपने एंगल से राहुल के इस गुपचुप दौरे की खबर छाप दी। उनके उस दौरे के दस दिन के बाद आज 28 को खबरें छन कर आईं कि राहुल बिहार में चुनावी जनसभा को संबोधित करने के बाद गोरखपुर आए थे। यहां से उन्होंने मुंबई स्पेशल ट्ेन पकड़ी और चले गए मुंबई। उनके लिए नौ एसपीजी जवानों के साथ बाजाब्ता रिजर्वेशन भी कराया गया। लेकिन राहुल को तो मुफलिसी में जी रहे मुसाफिरों का दर्द जानना था। सो वे अनारक्षित बोगी में सवार हो गए। अपने जीवन के शायद सबसे लंबे इस सफर में राहुल ने मुंबई जा रहे पूर्वांचल के मजदूर तबकों से उनकी समस्याएं पूछीं और आदतन उन्हें जल्द ही इससे निजात दिलाने का आश्वासन भी दे दिया। राहुल ने कुछ ऐसा ही कारनामा मुंबई में भी किया था। मुंबई की लोकल में सफर कर। हालांकि वह यात्रा इससे बहुत अलग थी। लेकिन तब भी कहा गया कि राहुल ने बाल ठाकरे को उनके गढ़ में ही उन्हें आईना दिखाने और आम मंुबइकर की दिक्कतों को जानने के लिए अपनी लग्जरी गाड़ी को छोड़ लोकल में सफर किया। कुछ बरस पहले उन्होंने यूपी में मेहनतकश मजदूरों के साथ खेतों में काम कर उनके भी दर्द को सहा था। कलावती के दर्द को भी महसूस किया। लेकिन राहुल जी आप कब तक आम आदमी के दर्द को सहेंगे और उन्हें महसूस करेंगे? देश में आपकी हुकूमत सी ही है। कम से कम इस दर्द को दूर करने के लिए अब तो कुछ करिए।मासूमों की मौत भी भूल गएकुछ दिन पहले राहुल गांधी ने गोरखपुर में इंसेफेलाइटिस ;जेईद्ध से दम तोड़ रहे मासूमों का रिकार्ड भी दिल्ली तलब किया था। मुझे बड़ी उम्मीद थी कि शायद अब इंसेफेलाइटिस के प्रति उदासीन रवैया अपना रही सरकार की सेहत पर कुछ असर पड़ेगा, लेकिन आज तकरीबन दो माह बीत गए। लेकिन हालात वही ढाक के तीन पात हैं। न तो राहुल ने अब तक उन मासूमों की सुध ली जो अस्पतालों में एक-एक पल जीने के लिए लड़ रहे हैं और न ही यहां के अस्पताल प्रशासन ने। यहां रोज इंसेफेलाइटिस से तीन से चार बच्चे दम तोड़ रहे हैं। जेई से बच्चों की मौतें अब यहां इतनी आम हो गई हैं कि इन मौतों पर कोई मातम भी नहीं मनाता। बहुत दुःख होता है रोज तीन-चार बच्चों की मौत की खबर पढ़कर। राहुल गांधी ने भी इस गंभीर समस्या को बड़े ही हल्के में लिया।