Wednesday, November 19, 2014

यूं इतनी खामोशी से तुम्हारा चले जाना...


जीना कोई उससे सीखे। पांच साल में हर पल नई उमंग, उत्साह और उल्लास से भरा हुआ। उसकी आदतों ने बहुत कम उम्र में उसे सबका चहेता बना दिया था। मुंबई के मीरा रोड स्थित मीरा दर्शन सोसायटी में रहने वाला हर शख्स उसके मोहजाल में फंसा था। पांचवे फ्लोर पर बने घर में जाते-आते समय जो मिलता, उससे हाय-बाय जरूर करता। रिप्लाई मिले या नहीं, उसे तो बस उसी मासूमियत से अंकल बाय-आंटी हाय कहना था। किसे पता था कि ये छलिया है। सबको छलेगा।

 बच्चों में भी उसकी स्वीटनेस, क्यूटनेस उसे सबसे अलग करती थी। स्कूल से लेकर डांस क्लास तक, स्केटिंग से लेकर स्वीमिंग क्लास तक... सबके सब उसके फैन थे। सभी उसे नाम से ही पुकारते थे। अमोघ...। उसकी पॉपुलेरिटी का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि स्केटिंग क्लास में जाते उसे सिर्फ दो दिन हुए थे। सारे बच्चों को उसके ट्रेनर ग्रीन टीशर्ट, यलो टीशर्ट, रेड टीशर्ट से बुलाते और अमोघ को उसके नाम से। ये जादू यूं ही नहीं चला था। वो था ही इतना डैशिंग और स्मार्ट। यही हाल उसके स्कूल और सोसायटी में भी था। सब जैसे उसी का इंतजार करते कि कब अमोघ आए और हम उसके साथ खेलें, बात करें। वो काफी टॉकेटिव भी था।

उसकी मासूमियत, उसकी शरारतें, उसकी अदाएं और इन सब पर भारी उसका स्टाइल। फैशन किस चिड़िया का नाम है, उसने बहुत जल्दी सीख लिया था। घूमने जाना हो या फिर स्कूल, खुद तैयार होने की कोशिश करता। होने भी लगा था। मोजे छोड़ सारे कपड़े खुद पहनता था। थोड़ी मशक्कत कर अब तो वह मोजे भी खुद ही पहनने लगा था। उसे खुद ड्रेसअप होने में ही मजा आता था। पैंट-शर्ट, जूते-मोजे पहनना। टाइटन की एक यलो वॉच उसकी फेवरेट थी। काफी कोशिश कर उसे भी खुद पहनता था। मम्मा तैयार करती तो टोकता, मैं तैयार हो रहा हूं ना। आप रहने दो।

वेल ड्रेसअप होने के बाद बालों में डैडी वाली हेयर क्रीम लगाता। फिर स्पाइकी हेयर स्टाइल कर कमर पर हाथ रख पूरे घर में उसका इठलाना देखते ही बनता था। बालों से उसे बेइंतहां प्यार था। मजाल है कि कोई उसके बाल छू ले। उसका हेयर स्टाइल बिगाड़ दे। कटिंग भी कराने जाता तो कटिंग वाले अंकल से हेयर स्टाइल बताते हुए कहता कि अंकल ऐसे नहीं ऐसे...। अंकल भी उसकी हरकतों पर मुस्कुराते हुए कटिंग करते। नानी के घर आने पर सबको हेयर स्टाइल दिखाता था।

साफ बोलना उसे काफी देर से आया। कभी-कभी तो मां भी परेशान हो जाती कि इस उम्र में तो बच्चे जबान तोड़ बातें करते हैं और मेरा लाल है कि कुछ साफ ही नहीं बोलता। पर उसे इस बात की तसल्ली थी कि मेरा बच्चा जो बोलता था वह मीठी मिश्री सी कानों में घुलती थी। सुनने वाला हर शख्स उसकी बातों पर फ्लैट हुए बिना रह ही नहीं सकता था। मां कहती भी थी कि बेटा धीरे बोल पर मीठा बोल। हालांकि अब उसने साफ बोलना शुरू ही किया था। अभी तक वह तोतली भाषा में ही अपनी बात कहता था। मसलन, काउल मामा, लाजू मामा, चीतेश भाई और फेवरेट चीटी आंटी।

रोना और पिनकना तो जैसे उसे आता ही नहीं। हर हालात और हर समय खुश रहना। हां, नाराजगी जताने का उसका अंदाज भी अलग था। दोनों हाथ पीछे बांध सिर नीचे कर चलना। किसी से न कुछ कहना न देखना। अगर थोड़ी देर में कोई उसे नोटिस न करे तो कनखियों से देखना कि कोई मुझे देख रहा या नहीं। कोई देख ले तो फिर पुरानी स्टाइल में आ जाना। नजरें जमीन पर और चेहरे पर नटखट नौटंकी के भाव।

अभी सब कुछ अच्छा ही तो चल रहा था। राहुल मामा को व्हाट्स एप पर हर्ट शेप मैसेज भेजकर खुश होता। फिर फोन भी करता। कहता कि मामा मैंने आपको हर्ट शेप भेजा। मामा रिप्लाई करते तो दौड़कर मम्मा को फोन दिखाता और खिलखिलाकर कहता कि देखो मम्मा... मामा ने भी मुझे व्हाट्स एप पर हर्ट शेप भेजा। डैडी को भी मैसेज भेजता। फोन करने पर डैडी अगर बात न करें तो मामा को फोन कर डैडी की शिकायत कि राहुल मामा... डैडी अमोघ का फोन नहीं उठा रहे हैं। आप उनसे बात करिए और कहिए कि अमोघ को फोन करें। अमोघ को उनसे बात करनी है।

कॉपी पेंसिल थामते ही उसने ड्राइंग करनी शुरू कर दी थी। स्कूल में ड्राइंग में मिला होमवर्क हो या घर पर यूं ही कुछ ड्राइंग करना हो। पूरे पेज पर सबसे पहले वो तीन सर्किल बनाता था। दो बड़े और बीच में एक छोटा सर्किल। तीनों में आंख, नाक कान, बाल बनाता और फिर मम्मा को दिखाता। मम्मा... ये डैडी, ये आप और बीच में अमोघ। मम्मा... हम तीनों फैमिली हैं ना...। अमूमन मां-बाप ही बच्चे को सिखाते कि बेटा हम तीनों फैमिली है, लेकिन वो बच्चा उल्टा मम्मा-डैडी को सिखाता कि हम तीनों फैमिली हैं ना...।

पूरी ड्राइंग की कॉपी और दो मोटी डायरी उसकी ऐसी ही तीन फैमिली सर्किल से भरी पड़ी है। स्कूल में ड्राइंग के लिए चाहे जो भी उसे टॉपिक मिले। सारे टॉपिक, टीचर के सारे ऑर्डर एक तरफ। वो सबसे पहले तीन फैमिली सर्किल ही बनाता था। घर आकर मम्मा को कॉपी दिखाता कि मम्मा... आज मैंने स्कूल में हम तीनों की फोटो बनाई। अपनी छोटी सी अंगुली रख बताता कि ये डैडी, ये मम्मा और बीच में ये अमोघ। और हम तीनों फैमिली हैं ना... ये लाइन जरूर बोलता।

उस बच्चे को जल्दी बड़ा होना था। हर चीज बड़ी तेजी से सीख लेता था। कपड़े पहनना क्या सीखा उसने, मम्मा के हाथों तैयार ही नहीं होता। मम्मा कपड़े पहनाने की कोशिश भी करती तो मना कर देता। कहता कि मम्मा... अब मैं बड़ा हो गया हूं ना। मैं पहन लूंगा। छोटा कहते ही वो चिढ़ सा जाता था। किसी ने अगर ये कह दिया कि अमोघ लोअर केजी में पढ़ता है। तो उसे डांटने के अंदाज में कहता कि ... नहीं, अमोघ सीनियर केजी में पढ़ता है। उसे छेड़ना हो तो बस उससे लोअर केजी की बात कह दीजिए। नाक-भौं सिकोड़ लेता। कितना क्यूट लगता था। उतना ही सुंदर जितना उसका स्माइली फेस, शायद उससे भी सुंदर। बडे़ होने की इतनी जल्दी कि एक बार पापा को शेव करते देख खुद भी शेविंग फोम गालों पर लगा लिया। मम्मा से कहता कि मुझे भी शेव करनी है। अब उसकी इस बात पर क्या किया जाए, सिवाए उसकी मासूमियत पर हंसने के।

अपनी जान उसे बेहद प्यारी थी। वो हर काम करता था, सिवाए उसके जिससे उसे चोट लग सकती थी। खुद की सेफ्टी का वो शुरू से ही ध्यान रखता था। शायद इसी कारण पांच साल का होने पर भी उसके शरीर पर एक चोट का निशान न था। चोट तो खैर छोड़िए, एक खरोंच भी नहीं लगी थी। खुद तो एलर्ट रहता ही था, उससे ज्यादा उसकी मां। साये की तरह उससे चिपकी रहती थी। साइकिल चलाने पार्क में जाता तो भी उसके पीछे-पीछे दौड़ती। सोसायटी की उसकी फ्रेंड भी कहतीं कि श्वेता उसे छोड़ दो अकेले। वो अब बड़ा हो गया है। लेकिन मां कहां मानने वाली, दौड़ती रहती अपने लाल के पीछे कि कहीं गिर ना जाए। गिरे भी तो मैं तुरंत पकड़ लूंगी।

जब चलना भी न सीखा था, तभी से वो खुद की हिफाजत करता था। बेड पर से कभी वो जमीन पर नहीं गिरा। और बच्चों के लिए बेड पर ही तकिया या फिर बेडशीट से बेरीकेडिंग कर दी जाती है। लेकिन उसके लिए आज तक ऐसा नहीं किया गया। सोते हुए या फिर खेलते हुए बेड के किनारे आ भी जाए तो हाथ से आइडिया लेता कि कितना किनारे आ गया। डेंजर जोन में आते ही वापस हो लेता। ये हरकत सभी को हंसाती। चलना भी उसने काफी जल्दी सीखा। क्रॉल शुरू करने के कुछ ही समय बाद वह चलने लगा था। वॉकर से भी चलता कम स्किट ज्यादा करता। सीढ़ी चढ़ना-उतरना हो या दरवाजा बंद करना हो, मजाल है कि उसे चोट लग जाए या गिर जाए। खुद की सेफ्टी उसे बहुत अच्छी तरह से आती थी।

खिलौनों में सिर्फ उसे कार ही पसंद थी। वो चाहे जैसी हो, होनी कार ही चाहिए। उसका टूथब्रश भी कार की शेप वाला ही था। डैडी की वैगनआर की चाबी हमेशा उसकी पैंट में लटकी होती थी। डैडी के साथ कार में बैठकर उसका इतराना। विंडो के पास शैतानी करना। कार की चारों सीटों पर यूं उछलकूद करना जैसे बेडरूम का बेड हो। ड्राइव कर रहे डैडी को बड़े गौर से देखता था। गोयाकि गाड़ी चलाना सीख रहा हो। कारों के शौकीन इस बच्चे को छोटी-बड़ी अधिकतर कारों के नाम पता थे। कारों में फेवरेट उसकी होंडा सिटी थी। सड़क पर चलते हुए होंडा सिटी दिख जाए तो उछल पड़ता था। कारों की इतनी सटीक पहचान कि आगे चलती कार देखकर डैडी को नाम बता देता था। वो होंडा की हो या हुंडई की। डैडी से अक्सर पूछता था कि डैडी हमारी छोटी कार बड़ी कब होगी। डैडी भी बच्चे की खुशी के लिए होंडा सिटी खरीदने की सोच ही रहे थे, लेकिन अफसोस उसकी कई ख्वाहिशें पूरी न हो सकीं।

                                                                                                                                               शेष जारी...

Saturday, August 23, 2014

big break

its a very long time to write something....lots of things waiting to come on board....