Wednesday, February 22, 2017

दबे पांव हिन्दुस्तान की दहलीज पर आया संकट, बगदादी की मुनादी थी दरगाह में धमाका

हिन्दुस्तान की दहलीज पर दबे पांव एक ऐसे संकट ने दस्तक दे दी है, जिसके नाम से पूरी दुनिया थर्राती है. इराक, सीरिया, साइप्रस, जॉर्डन और टर्की जैसे देशों में जड़े जमा चुके खूंरेजी संगठन आईएसआईएस ने अपनी नजरें अब साउथ ईस्ट एशिया पर गड़ा दी हैं. ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत और चीन अब उसके निशाने पर है. बीते हफ्ते पाकिस्तान की सूफी दरगाह लाल शाहबाज कलंदर में हुआ धमाका उसी की ‘मुनादी’ थी. पाकिस्तान में आईएसआईएस की आसान घुसपैठ ही भारत के लिए मुसीबत का सबब बन गया है.

कराची आतंकी संगठनों का बना अड्डा

हाल ही में बेल्जियम के थिंक टैंक इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप ने एक रिपोर्ट में खुलासा किया है कि पाकिस्तान का सबसे बड़ा शहर कराची भारत विरोधी आतंकी संगठनों का नया अड्डा बनता जा रहा है. ये संगठन बाकायदा वहां की सेना की सरपरस्ती में चलाए जा रहे हैं. कराची शहर आतंकी आकाओं के लिए हर तरह से मुफीद भी है. बड़ा होने के साथ-साथ कराची पाकिस्तान के सबसे अमीर शहरों में शुमार है. यहां से पाकिस्तान को 50 फीसद राजस्व मिल जाता है. पैसों की चमक के चलते आतंकियों ने इस शहर को चुना.
 

पाकिस्तान में आतंकी संगठनों की एक पूरी फेहरिश्त है. लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, तहरीक-ए-तालिबान और जमात-उद-दावा जैसे न जाने कितने संगठन इस शहर में बैठकर हिन्दुस्तान के खिलाफ साजिशें रचते हैं. इन संगठनों की सरमाएदारी में भारत को रक्तरंजित करने का प्लान तैयार किया जाता है. जैश जहां साल 2000 से भारत के खिलाफ जहर उगल रहा, वहीं लश्कर 1986 से ही सक्रिय है. पाकिस्तानी सेना का इन संगठनों पर कोई जोर नहीं है. चार साल पहले यानि 2013 में जरूर पाक रेंजर्स ने कुछ आतंकियों को खदेड़ा था, लेकिन सख्ती कम होते ही वे फिर लौट आए.

एक हफ्ते में आठ बड़े हमले ने दहलाया

बीते हफ्ते एक के बाद एक हुए 8 बड़े हमलों में कयामत का जो मंजर इस पड़ोसी मुल्क ने देखा, उसकी इबारत बरसों पहले उसके खुद ही लिखी थी. दरअसल जिस अलगाववादी सोच की बुनियाद पर यह पड़ोसी मुल्क बना है, उस पर किसी के पनपने की उम्मीद रखना बेमानी होगी. एक बानगी देखिए, 1965 में इस कट्टरपंथी मुल्क के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने हिन्दुस्तान से होड़ लेने की हड़बड़ाहट में ऐलान कर दिया कि अगर भारत परमाणु बम बनाएगा तो हम भी बनाएंगे, भले ही इसके लिए हमें घास की रोटी खाने पड़े. यह पाकिस्तानी हुक्मरानों की भारत से जलन और उनके वैचारिक दिवालियेपन को दर्शाता है. उसके बाद से एशिया में सामरिक संतुलन की दुहाई देते हुए पाकिस्तान ने कई खतरनाक मिसाइलों का परीक्षण किया था.

बगदादी ने बोको हराम से लेकर अल शबाब तक को जोड़ा

बगदादी अब साउथ ईस्ट एशिया पर अपना परचम लहराना चाहता है. आईएसआईएस के मुखिया अबू बकर अल बगदादी के नापाक मंसूबों को अफगानिस्तान से सटी सीमा पर मौजूद आतंकी संगठनों का साथ मिल गया है. नाइजीरिया का बोको हराम, सोमालिया का अल शबाब और पाकिस्तान का अंसार उल तौहीद जैसे आतंकी गुटों को जोड़कर बगदादी खुद इनका खलीफा बन गया है. अब वह अमेरिका से लेकर रूस और सीरिया से यूरोप तक बगदादी अपना साम्राज्य बनाना चाहता है.

अमेरिका की चूक का नतीजा आईएसआईएस

आईएसआईएस दरअसल अमेरिका की एक रणनीतिक चूक का ही नतीजा है. 2006 में इराक से सद्दाम हुसैन का खात्मा कर अमेरिकी सैनिक अमेरिका लौट आए. बस यहीं से बगदादी को इराक में अपनी जड़ें जमाने का मौका मिल गया. सत्ताविहीन इराक छोटे-मोटे आतंकी गुटों की सुरक्षित शरणस्थली बन गया. बगदादी ने इन्हें एकजुट कर आईएसआई (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक) नाम का आतंकी संगठन बना लिया. बाद में सीरिया जाने पर उसने आईएसआई से नाम बदलकर आईएसआईएस (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया) कर दिया. साल 2014 में कुछ ऐसे वीडियो जारी किए जिसने पूरी दुनिया को दहला दिया. हत्या के नए-नए तरीके इजाद कर जिस तरीके से उसके कत्लोगारत का खेल खेलना शुरू किया, उसने पूरी दुनिया में सिहरन पैदा कर दी.

सद्दाम हुसैन, लादेन और अब बगदादी

दरअसल, अमेरिका शुरू से ही अपने हित साधने के लिए चरमपंथी ताकतों का इस्तेमाल करता आया है. पहले उसने ओसामा बिन लादेन को पाला पोसा. जब वह उसी के लिए नासूर बन गया तो पाकिस्तान के ऐबटाबाद में उसका भी सद्दाम जैसा अंजाम कर दिया. सद्दाम हुसैन भी एक समय अमेरिका का ‘दोस्त’ था. बताया जाता है कि सद्दाम को अमेरिका ने रासायनिक हथियार मुहैया कराए, जो बाद में उसी के लिए जी का जंजाल बना. अमेरिका ने उसे भी घुसकर मारा. अब इस कड़ी में बगदादी का नाम भी जुड़ गया है. अमेरिका ने जाने-अनजाने आईएसआईएस की मदद की. उसे हथियार मुहैया कराए. इराकी सेना को भेजे गए हथियार बगदादी की सेना ने हथिया लिए. इन्हीं हथियारों के दम पर उसने इराक में कोहराम मचाना शुरू कर दिया. कुछ ही दिनों में आईएसआईएस की जड़ें इराक, सीरिया, ईरान, साइप्रस, जॉर्डन, लेबनान, फिलिस्तीन, टर्की और इजराइल तक में जम गईं.

हाफिज सईद की नजरबंदी भी दिखावा

हाल ही में नवाज सरकार ने भारत सरकार की कूटनीति के बाद चौतरफा दबाव पड़ने पर जमात-उद-दावा के मुखिया और मोस्ट वांटेड आतंकी हाफिज सईद को ‘नजरबंद’ किया है. लेकिन इस ‘नजरबंदी’ पर भी सवाल उठ रहे हैं. वहीं पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ हाफिज के बारे में मुख्तलिफ राय रखते हुए उन्हें गरीबों का हमदर्द बता डाला. मुंबई के गुनहगार हाफिज की शान में मुशर्रफ ने कसीदे पढ़ते हुए कहा कि वे तो एनजीओ चला रहे हैं. उन्हें रिहा किया जाना चाहिए. वहां के हुक्मरानों की यही सोच इस मुल्क को आग में झोंक रही है, जिसकी तपिश से हिन्दुस्तान भी झुलसता रहा है.

सूफी धारा बगदादी के निशाने पर

पाकिस्तान में सिंध प्रांत के मशहूर लाल शाहबाज कलंदर दरगाह में हुए धमाके ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया. 100 जायरीनों की मौत से पाकिस्तान थर्रा उठा. हमले के फौरन बाद आईएसआईएस ने इसकी जिम्मेदारी ली थी. लाल शाहबाज कलंदर सूफी संत सैय्यद मोहम्मद उस्मान मारवंदी की दरगाह है. बताया जाता है कि अफगानिस्तान ने मारवंद इलाके में वे पैदा हुए थे. मदीना, कर्बला, अजमेर और सिंध घूमते हुए वे सहवान में ही आकर बस गए थे. इस्लाम की सूफी धारा ने हमेशा से मजहबी और फिरकापरस्त ताकतों का विरोध करते हुए इंसानियत को सबसे ऊपर रखा. इसी वजह से सूफी दरगाह आईएसआईएस जैसे दुर्दांत संगठन के निशाने पर आ गए है. अमीर खुसरो ने लाल शाहबाज कलंदर की शान में ही बेहद मकबूल सूफियाना गीत दमादम मस्त कलंदर लिखा था.
 

डोनाल्ड ट्रंप का रुख हो सकता है घातक

इधर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया के नक्शे से आईएसआईएस का वजूद खत्म करने की प्रतिबद्धता को फिर दोहराया है. ट्रंप ने साफ कहा कि अपने देश को सुरक्षित रखने के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं. लाल शाहबाज कलंदर दरगाह में हुए धमाके के बाद ट्रंप ने नवाज शरीफ को हमला करने वाले आतंकियों का पता लगाने के लिए मदद की पेशकश की थी. ट्रंप ने अमेरिकी सेना के पुनर्निर्माण करने का ऐलान किया है. ट्रंप का यह रुख खूंरेजी संगठन आईएसआईएस के लिए कितना घातक होगा, यह फिलहाल भविष्य के गर्त में है. शायद मुस्लिम कट्टरपंथ के अंदेशे को देखते हुए ही ट्रंप ने ईरान, सूडान, लीबिया, सोमालिया, सीरिया, इराक और य़मन पर पाबंदी लगाई थी.

कट्टरपंथियों का अमेरिका करता रहा है इस्तेमाल

काबिलेगौर है कि 20वीं सदी में रूस से सहमे अमेरिका ने भी अपने हित साधने के लिए अलगावादी अवधारणा को खाद-पानी दिया था. उसने अपना उल्लू सीधा किया, लेकिन देर से ही सही पर इसका खामियाजा उसे भी भुगतना पड़ा था. साम्यवादी सोच की काट के लिए अमेरिका ने कट्टरपंथियों का इस्तेमाल किया तो सही, लेकिन वह दीर्घकालीन नहीं रहा. नतीजतन जिन कट्टरपंथी अलंबरदारों को कभी उसने अत्याधुनिक जंगी साजो-सामान मुहैया कराए, वह उसी की जान लेने पर आमादा हो गए.
 
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