यूपी के चुनावी समर में इस बार सबसे ज्यादा तैयार ‘बहन जी’ ही दिख रही हैं। सत्ताधारी दल सपा जहां
अपने परिवार में ही उलझी हुई है, तो
बीजेपी की हालत बिन दूल्हे की बारात वाली दिख रही है। कांग्रेस का तो कोई पुरसाहाल
ही नहीं है। इन चार दलों के अलावा बाकी सिर्फ अपने अस्तित्व की लड़ाई ही लड़ेंगे।
एक ओर जहां बीजेपी, सपा
और कांग्रेस अपने प्रत्याशियों तक का चयन नहीं कर पा रहे हैं, वहीं बहनजी ने सबसे पहले न सिर्फ चयन
किया, बल्कि ताल ठोंकते हुए
उनका ऐलान भी कर दिया। बसपा सुप्रीमो ने खुला खेल फर्ररुखाबादी स्टाइल में जिस तरह
बिना लाग लपेट के उम्मीदवारों का ऐलान किया वो दिखाता है कि उनका न सिर्फ
आत्मविश्वास सबसे ज्यादा है, बल्कि
सियासी सूझबूझ में फिलहाल वे सब पर भारी पड़ रही हैं।
नोटबंदी से बेअसर ‘माया’: कांशीराम की विरासत को आगे बढ़ाने वाली
मायावती इस बात से बेफिक्र दिख रही हैं कि उनके प्रत्याशियों के सामने कौन मोर्चे
पर आएगा। उल्टा उन्होंने पहले ही दांव लगाकर बाकी दलों को सोचने पर मजबूर कर दिया
है कि उनके लड़ाकों के सामने वे किसे उतारे। बाकी दल अभी भी एक-दूसरे के पत्ते
खुलने का इंतजार कर रहे हैं। इस बार यूपी में अपना ‘वनवास’ खत्म होने का इंतजार कर रही भाजपा भी
पसोपेश में है कि यदि जीत मिलती है, तो किसका ‘राजतिलक’
करेंगे। राजनीतिक पार्टियों के लिए
नोटबंदी जैसी ‘विपदा’
ने भी मायावती की योजना में रत्तीभर
परिवर्तन नहीं किया।
सर्वाधिक समय तक सूबे की सीएम : मायावती का यूपी में कद क्या
है इसकी बानगी देखिए। उत्तर प्रदेश में 8 मार्च 1952
से लेकर अब तक कुल 16
बार विधानसभा गठित हो चुकी है। अब तक 20 लोग 35
बार सीएम की कुर्सी पर बैठ चुके हैं। इसमें सर्वाधिक समय तक सिर्फ मायावती ही इस
कुर्सी पर काबिज रही हैं। बसपा सुप्रीमो अपने चार बार के मुख्यमंत्रित्व काल में
कुल 2569 दिन तक इस पद पर
रहीं। 15 जनवरी को अपना 61वां बर्थडे मनाने जा रहीं मायावती एक
बार फिर यूपी की सीएम बनने के लिए लालायित हैं। उनकी यह लालसा मौजूदा सियासी हालात
में खूब फलती-फूलती दिख रही है।
सोशल इंजीनियरिंग के हिट फॉर्मूले पर पूरा भरोसा : उत्तर
प्रदेश का चुनाव विकास पर नहीं, बल्कि
जाति के बलबूते लड़ा जाता है, इसीलिए
बहनजी को एक बार फिर 10
साल पहले खुद आजमाए हुए सोशल इंजीनियरिंग के हिट फॉर्मूले पर पूरा भरोसा है। 2007 में कारगर रहा उनका ब्राह्मण दलित और
मुस्लिम का सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूला इस बार भी रंग दिखा सकता है। हालांकि 2012 में एंटी इनकम्बेंसी और मुसलमानों के
खुलकर मुलायम के साथ आने से उन्हें सत्ता से बेदखल होना पड़ा था। हालांकि इस बार
परिस्थितियां बिलकुल विपरीत है। मायावती का कोर वोटर दलित ही है, जिसका उत्तर प्रदेश में तकरीबन 20.5% वोट है, वहीं कुल आबादी में 20% मुसलिम हैं। ऐसे में टिकट बंटवारे में
उन्होंने ऐसा समीकरण बिठाने की कोशिश की है, जिससे दलित-मुसलिम के साथ-साथ ब्राह्मण
बिरादरी भी उनके साथ रहे।
मुस्लिम वोट बैंक को पूरी तवज्जो : माया अपने मुस्लिम वोट बैंक
को भी छिटकने नहीं देना चाहतीं। वे बखूबी समझती हैं कि मुसलमानों का एकजुट वोट
किसी भी सियासी समीकरण को बना और बिगाड़ सकता है, इसीलिए स्पष्ट शब्दों में वे उन्हें
बतलाती रही हैं कि सपा का साथ देकर वे अपना वोट जाया न करें। मायावती ने टिकट
बंटवारे में मुसलमानों को 403
विधानसभा सीटों में से 97
सीटें दी हैं। बसपा की सौ उम्मीदवारों की पहली सूची में 36 मुसलमान प्रत्याशी थे, वहीं दूसरी सूची में 22 और तीसरी सूची में 24 मुस्लिम प्रत्याशी थे।
टिकट बंटवारे में सबको साधा : मायावती ने कितनी चालाकी से समाज
के सभी वर्गों को साधा है, इसकी
बानगी उनके टिकट बंटवारे को देखकर आसानी से समझा जा सकता है। जातिगत समीकरण पूरी
तरह फिट बैठाने के बावजूद वो नहीं चाहतीं कि उन पर यह ठप्पा लगे। वे कहती रहती हैं
कि हम जातिवादी नहीं है। हमने चुनाव के लिए समाज के सभी वर्गों को टिकट दिया,
शायद इसीलिए इस बार उन्होंने बाकायदा एक
प्रेस कॉन्फ्रेंस विशेष तौर पर सिर्फ यह बतलाने के लिए की, कि उन्होंने पूरे समाज को बराबरी का हक
दिया है। बसपा ने इस बार 87
टिकट दलितों, 97
मुसलमानों, 106
ओबीसी और 113
अगड़ी जाति के लोगों को दिया है। अगड़ी जाति में भी टिकट बंटवारे के दौरान
उन्होंने सामंजस्य बैठाने की कोशिश की। यहां भी देखिए, उन्होंने 66 टिकट ब्राह्मण, 36 क्षत्रिय और 11 कायस्थ, वैश्य एवं पंजाबी समाज को दिए हैं।
कांग्रेस को डराया भी और लालच भी दिया : माया कितनी दूरदर्शी
हैं, इसका अंदाजा इसी से
लगाया जा सकता है कि वे विधानसभा में अपनी मजबूती के लिए कांग्रेस को दो साल बाद
होने वाले आम चुनाव में होने वाले नुकसान का डर दिखाने लगी हैं। दरअसल, मायावती चाहती हैं कि कांग्रेस किसी भी
कीमत पर सपा से गठबंधन न करें, क्योंकि
इस दोस्ती का सीधा असर उनके वोट बैंक पर पड़ेगा।
माया गाहे-बगाहे अपनी रैलियों में कांग्रेस को ये संकेत दे रही
हैं कि यदि वे 2017
में सपा से दूर रहती हैं, तो
2019 में ‘हाथी’ का पूरा सपोर्ट ‘हाथ’ के साथ होगा। कांग्रेस भी जानती है कि
यूपी में वैसे भी उसकी दाल नहीं गलने वाली। ऐसे में भलाई इसी में है कि 2019 में भाजपा के खिलाफ मजबूती से लड़ा
जाए।
इस आर्टिकल को News18India की वेबसाइट पर भी पढ़ सकते हैं। ये है लिंक
http://hindi.news18.com/blogs/rahul-vishwakarma/mayawati-up-election-bjp-and-congress-540699.html
इस आर्टिकल को News18India की वेबसाइट पर भी पढ़ सकते हैं। ये है लिंक
http://hindi.news18.com/blogs/rahul-vishwakarma/mayawati-up-election-bjp-and-congress-540699.html
No comments:
Post a Comment