वैसे जानता तो मैं उसे काफी पहले से था, लेकिन शुरू में वो मुझे बिलकुल भी अच्छी नहीं लगती थी। बचपन में हम एक-दूसरे को कनखियों से ही देखते थे। पर बीते 10 सालों के दौरान उससे एक अटूट सा रिश्ता बन गया। हमारी पहली मुलाकात साल 2006 में हुई। हालांकि वो मुलाकात एक मजबूरी में ही हुई थी।
घर से 1300 किलोमीटर दूर जम्मू जाने पर बहुत बुरा लगा। अचानक जैसे सब कुछ छूट गया, पर उसकी मौजूदगी ने कुछ हिम्मत बढ़ाई थी। जम्मू में ही मैंने उसे और करीब से जाना। जीवन के अकेलेपन को काफी हद तक उसने भरा। उसकी खासियत और हर बुरे वक्त में साथ निभाने की अदा का मैं भी कायल हो गया। शुरू में जितना उससे चिढ़ता था, अब उस पर उतना ही फिदा हो गया। धीरे-धीरे कई शहर बदल दिए। जम्मू, औरंगाबाद, मुंबई, पानीपत, गोरखपुर और अब आगरा। शहर बदले, दोस्त बदले पर वो न बदली।
बीच में कुछ दिनों के लिए मैंने उसका साथ छोड़ दिया, पर उसकी मोहब्बत कम न हुई। दोबारा वो याद आई तो फिर उसी शिद्दत से मिली। हमेशा की तरह मेरे लिए फिक्रमंद। फिर वही सुकून मिला जो पहली, दूसरी या तीसरी मुलाकात में मिला करता था। कई बार बुरे वक्त में उसने जिस तरीके से मेरा साथ दिया, उसने दिल जीत लिया। काम के तनाव और थकान से हारा हुआ सा लगता था, पर उसके सामने आते ही नई ऊर्जा आ जाती थी। दो मिनट की मुलाकात ही तरोताजा कर देती थी। समय बीतने के साथ हम दोनों की नजदीकियों की खबर दोस्तों के बाद घरवालों को भी हो गई। दोस्तों ने नसीहत दी कि भाई उससे दोस्ती ठीक नहीं। कभी-कभी की मुलाकात तो ठीक, पर लंबे समय का साथ अच्छा नहीं है। लेकिन वे टोकते-टोकते थककर चुप हो गए। ना-नुकुर करते हुए वे भी मान गए। ताज्जुब कि घरवालों ने इस रिश्ते पर ऐतराज नहीं जताया। शायद उन्हें मेरी मजबूरी पता थी। उन लोगों को भी वह बहुत पसंद थी। उसके गुणों से वाकिफ घरवाले भी गाहे-बगाहे उसके बारे में पूछ लेते थे। अब मुझे भी लगता था कि उसके बिना तो गुजारा नामुमकिन हो गया है।
लेकिन, इधर कुछ दिनों से लोगों ने उस पर एक तोहमत लगा दी है। लोगों का कहना है कि उसने मुझे बिगाड़ दिया है। उससे मुझे खतरा है। ऐसे लांछन से उसका वजूद ही संकट में आ गया है। मैं भी उसका बचाव नहीं कर पा रहा। जमाने के दबाव के आगे मुझे भी झुकना पड़ रहा। मुझे भी उससे दूर होना पड़ रहा। उसका साथ छोड़ना पड़ रहा। पिछले 10 सालों से जिस तरह उसने मेरा साथ निभाया, वह हमेशा याद रहेगा।
तुम बहुत याद आओगी मेरी प्यारी मैगी।

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नोट : अपनी प्रेम कहानी मैंने उस वक्त लिखी थी, जब मैगी के ‘चरित्र' पर शक किया जा रहा है। पिछले दो महीने से मैगी की ‘अग्निपरीक्षा' लैब में ली जा रही है। मैगी के बाइज्जत बरी होने का मुझे बेसब्री से इंतजार है।